महाराजा यदु और यादव जाति की उत्पत्ति, @ जय माधव -जय यादव

महाराजा यदु और यादव जाति की उत्पत्ति :
जय माधव- जय यादव 
महराजा यदु आर्यवर्त के एक महान राजा थे, वे यदुकुल के प्रथम सदस्य है, और यदु से ही यादव जाति का विस्तार हुआ।


महराज यदु यायाती के पुत्र थे, अत्रि ने ब्रह्मा पुत्र कर्दम की पुत्री अनुसूया से विवाह किया था। अनुसूया की माता का नाम देवहूति था, अत्रि को अनुसूया से एक पुत्र जन्मा जिसका नाम दत्तात्रेय था, अत्रि-दंपति की तपस्या और त्रिदेवों की प्रसन्नता के फलस्वरूप विष्णु के अंश से महायोगी दत्तात्रेय, ब्रह्मा के अंश से चन्द्रमा तथा शंकर के अंश से महामुनि दुर्वासा, महर्षि अत्रि एवं देवी अनुसूया के पुत्र रूप में आविर्भूत हुए, इनके ब्रह्मावादिनी नाम की कन्या भी थी।


अत्रि पुत्र चन्द्रमा ने बृहस्पति की पत्नी तारा से विवाह किया जिससे उसे बुध नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ, जो बाद में क्षत्रियों के चंद्रवंश का प्रवर्तक हुआ, इस वंश के राजा खुद को चंद्रवंशी कहते थे, चूंकि चंद्र अत्रि ऋषि की संतान थे इसलिए आत्रेय भी चंद्रवंशी ही हुए, ब्राह्मणों में एक उपनाम होता है आत्रेय अर्थात अत्रि से संबंधित या अत्रि की संतान।


अत्रि से चंद्रमा, चंद्रमा से बुध, बुध से पुरुरवा, पुरुरवा से आयु, आयु से नहुष, नहुष से यति, ययाति, संयाति, आयति, वियाति और कृति नामक छः महाबल-विक्रमशाली पुत्र हुए।


नहुष के बड़े पुत्र यति थे, जो संन्यासी हो गए इसलिए उनके दुसरे पुत्र ययाति राजा हुए। ययाति के पुत्रों से ही समस्त वंश चले, ययाति के 5 पुत्र थे, देवयानी से यदु और तुर्वसु तथा शर्मिष्ठा से द्रुह्मु, अनु एवं पुरु हुए।


यदु से यादव, तुर्वसु से यवन, द्रहुयु से भोज, अनु से मलेच्छ और पुरु से पौरव वंश की स्थापना हुई।


ययाति के 5 पुत्र थे- 1. पुरु, 2. यदु, 3. तुर्वस, 4. अनु और 5. द्रुह्मु, ययाति के बाद इन पांचों ने संपूर्ण धरती पर राज किया और अपने कुल का दूर-दूर तक विस्तार किया, आगे चलकर ये ही वंश यादव, तुर्वसु, द्रुह्यु, आनव और पौरव कहलाए।
ऋग्वेद में इन्हीं को पंचकृष्टय: कहा गया है।


यदु के चार पुत्र थे- सहस्त्रजित, क्रोष्टा, नल और रिपुं। सहस्त्रजित से शतजित का जन्म हुआ, शतजित के तीन पुत्र थे- महाहय, वेणुहय और हैहय, हैहय से धर्म, धर्म से नेत्र, नेत्र से कुन्ति, कुन्ति से सोहंजि, सोहंजि से महिष्मान और महिष्मान से भद्रसेन का जन्म हुआ।


भद्रसेन के दो पुत्र थे- दुर्मद और धनक। धनक के चार पुत्र हुए- कृतवीर्य कृताग्नि, कृतवर्मा व कृतौजा। कृतवीर्य का पुत्र अर्जुन था, अजुर्न ख्यातिप्रात एकछत्र सम्राट था, वह सातों द्वीप का एकछत्र सम्राट था, उसे कार्तवीर्य अर्जुन और सहस्त्रबाहु अर्जुन कहते थे।


सहस्त्रबाहु अर्जुन के हजारों पुत्रों में से केवल पांच ही जीवित रहे, शेष सब परशुराम जी की क्रोधाग्नि में भस्म हो गए, बचे हुए पुत्रों के नाम थे- जयध्वज, शूरसेन, वृषभ, मधु, और ऊर्जित।


जयध्वज के पुत्र का नाम था तालजंघ, तालजंघ के सौ पुत्र हुए, वे 'तालजंघ' नामक क्षत्रिय कहलाए, महर्षि और्व की शक्ति से राजा सगर ने उनका संहार कर डाला, उन सौ पुत्रों में सबसे बड़ा था वीतिहोत्र, वीतिहोत्र का पुत्र मधु हुआ।


मधु के सौ पुत्र थे, उनमें सबसे बड़ा था वृष्णि छोटा परीक्षित इन्हीं मधु, वृष्णि और महाराजा यदु के कारण यह जाती माधव, वार्ष्णेय और यादव कहलाता है।


महाराजा यदु के दूसरे पुत्र यदुनन्दन क्रोष्टु के पुत्र का नाम था वृजिनवान, वृजिनवान का पुत्र श्वाहि, श्वाहि का रूशेकु, रूशेकु का चित्ररथ और चित्ररथ के पुत्र का नाम था शशबिन्दु, महाराजा शशविंदु चक्रवर्ती और युद्ध में अजेय थे।


शशविंदु के दस हजार पत्नियां थीं, और इनके सैकड़ों पुत्र हुए, उनमें पृथुश्रवा आदि छ: पुत्र प्रधान थे, पृथुश्रवा के पुत्र का नाम था धर्म, राजा धर्म का पुत्र उशना हुआ और उशना का पुत्र हुआ रूचक।


आगे चलकर इसी वंश में राजा सात्वत हुए और उनके सात पुत्र हुए - भजमान , भोजी , दिव्य , वृष्णि , अंधक , देववृक्ष और महाभोज ।


इन सब मे वृष्णि और अंधक खूब प्रसिद्ध हुआ और वृष्णि वंश में ही शुर और पार्जन्य का जन्म हुआ और तथा अंधक वंश में राजा आहुक हुए और उनसे दो पुत्र हुए देवक और उग्रसेन । देवक से देवकी हुई और कई अन्य संतान भी हुए , राजा उग्रसेन से कंस हुआ ।


शूरसेन की पीढ़ी में ही वासुदेव और कुंति का जन्म हुआ,
कुंति हस्तिनापुर के कुमार पांडु की पत्नी बनी जबकि वासुदेव से कृष्ण का जन्म हुआ ।
पार्जन्य के 9 पुत्र हुए उनमें से एक नंद बाबा भी थे जिनके घर भगवान श्री कृष्ण का पालन किया गया ।
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हमारे और भी अनेक महाप्रतापी पूर्वज थे जिनके बारे में नही लिख पाया क्योंकि एक पोस्ट के जरिये सम्पूर्ण यदुवंश का इतिहास लिखना असंभव है इसलिए हमने सिर्फ महाराजा यदु और यादव जाती के शुरुआत के राजा और उनके पुत्रो के बारे में लिखा है , और बताया है कि कैसे राजा यदु से समस्त यादव जाती का विस्तार हुआ ।


जय यादव जय माधव ।। ✊
जय श्री कृष्ण ।। ✊
जय यदुवंश ।। ✊